Wp/mag/रामायण
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![]() राम द्वारा रावणके वध, एगो शाही मेवाड़ पाण्डुलिपिसे, १७मा शताब्दी | |
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धर्म | हिन्दुधर्म |
लेखक | वाल्मीकि |
भाषा | संस्कृत |
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रामायण (संस्कृत : रामायणम् = राम + आयणम् ; शाब्दिक अर्थ : 'रामके जीवन-यात्रा'), वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य हे जेकरामे श्रीरामके गाथा हे । एकरा आदिकाव्य[1] आउ एकर रचयिता महर्षि वाल्मीकिके 'आदिकवि'यो[2] कहल जाहे । संस्कृत साहित्य परम्परामे रामायण आउ महाभारतके इतिहास कहल गेलैहे आउ दूनो सनातन संस्कृतिके सबसे प्रसिद्ध आउ लोकप्रिय ग्रन्थ हे । रामायणके सात अध्याय हे जे काण्डके नामसे जानल जाहे । एकरामे कुल लगभग २४,००० श्लोक[ख] हे । सतमा उत्तरकाण्ड प्रक्षिप्त हे, तत्वमार्तण्डोमे उत्तरकाण्डके प्रक्षिप्त मानल गेलैहे ।[3] ओकरा बादके संस्कृत आउ अन्य भारतीयभाषाके साहित्य पर ई महाकाव्यके बड्डी प्रभाव हे आउ रामकथाके लेके अनेक 'रामायण' रचल गेलै ।
रचनाकाल
[edit | edit source]मान्यतानुसार रामायणके समय त्रेतायुगके मानल जा है। गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य श्री निश्चलानन्द सरस्वती प्रभृति सन्तके अनुसार श्रीराम अवतार श्वेतवाराह कल्पके सतमा वैवस्वत मन्वन्तर के चौबीसमा त्रेता युगमे होलै हल जेकर अनुसार श्रीरामचन्द्र जी के काल लगभग पौना दु करोड़ वर्ष पूर्व के है । एकर सन्दर्भमे विचार पीयूष, भुशुण्डि रामायण, पद्मपुराण, हरिवंश पुराण, वायु पुराण, सञ्जीवनी रामायण एवं पुराणसे प्रमाण देल जा है ।
ई महाकाव्यके ऐतिहासिक विकास आउ संरचनागत परतके जानेला ढेर प्रयास कैल गेलै हे । आधुनिक विद्वान एकर रचनाकाल ७मासे ४मा शताब्दी ईसा पूर्व मानऽ हथिन । कुछ विद्वान त एकरा तीसरा शताब्दी ई तकके रचना मानऽ हथिन ।[4] कुछ भारतीय कहऽ हैथिन कि ई ६०० ईपू से पहिले लिखल गेलै ।[5] ओकर पीछे तर्क ई है कि महाभारत, बौद्धधर्मके बारेमे मौन है जखनकि ओकरामे जैन, शैव, पाशुपत आदि अन्य परम्पराके वर्णन है ।[6] महाभारत, रामायणके पश्चात् रचित है, अतः रामायण गौतम बुद्धके कालके पूर्वके होवेके चाही । भाषा-शैलीके अनुसारो रामायण, पाणिनिके समयसे पहिलेके होवेके चाही ।
“ | रामायणके पहिला आउ अन्तिम काण्ड सम्भवतः बादमे जोड़ल गेलै हल । अध्याय दुसे सात तक ज्यादातर ई बात पर बल देल जा है कि राम विष्णु[ग] के अवतार हलथिन । कुछ लोगके अनुसार ई महाकाव्यमे यूनानी आउ ढेर अन्य सन्दर्भसे पता चलऽहै कि ई पुस्तक दोसरा सदी ईसा पूर्व से पहिले के न हो सकऽहै पर ई धारणा विवादास्पद है । ६०० ई०पू० से पहिलेके समय एहुसे ठीक है कि बौद्ध जातक रामायणके पात्रके वर्णन करऽहै जखनकि रामायणमे जातकके चरित्रके वर्णन न है ।[5] | „ |
सङ्क्षेपमे रामायण-कथा
[edit | edit source]हिन्दु शास्त्रके अनुसार भगवान् राम, विष्णुके मानव अवतार हलथिन । ई अवतारके उद्देश्य मृत्युलोकमे मानवजातिके आदर्श जीवनला मार्गदर्शन देल हलै । अन्ततः श्रीराम राक्षस [च]के राजा रावणके वध कैलथिन आउ धर्मके पुनर्स्थापना कैलथिन ।
रामायणमे सात काण्ड है - बालकाण्ड, अयोध्यकाण्ड, अरण्यकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, लङ्काकाण्ड आउ उत्तरकाण्ड ।
बालकाण्ड
[edit | edit source]अयोध्या नगरीमे दशरथ नामके राजा होलथिन जिनकर कौशल्या, कैकेयी आउ सुमित्रा नामक पत्नी सब हलथिन । सन्तान प्राप्ति हेतु अयोध्यापति दशरथ अपन गुरु श्री वशिष्ठके आज्ञासे पुत्रकामेष्टि यज्ञ करौलन[7] जेकरा ऋङ्गी ऋषि सम्पन्न कैलन ।

भक्तिपूर्ण आहुतिसब पाके अग्निदेव प्रसन्न होलन आउ ऊ स्वयं प्रकट होके राजा दशरथके हविष्यपात्र (खीर, पायस) देलथिन जेकरा कि ऊ अपन तीनो पत्निमे बाँट देलन । खीरके सेवनके परिणामस्वरूप कौशल्याके गर्भ से रामके, कैकेयीके गर्भसे भरतके आउ सुमित्राके गर्भसे लक्ष्मण आउ शत्रुघ्नके जनम होलै ।

राजकुमार सबके बड़ होवे पर आश्रमके राक्षससे रक्षा हेतु ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ से राम आउ लक्ष्मणके माङ्गके अपन साथ ले गेलन । राम ताड़का आउ सुबाहु नियन राक्षस सबके मार देलन आउ मारीचके बिन फलवाला बाण[8] से मारके समुद्रके पार भेज देलन । ओन्ने लक्ष्मण राक्षस सबके सब सेनाके संहार कर दलन । धनुषयज्ञ हेतु राजा जनकके निमन्त्रण मिले पर विश्वामित्र राम आउ लक्ष्मणके साथे उनकर नगरी मिथिला (जनकपुर) आ गेलन । रस्तैयामे राम गौतम मुनिके स्त्री अहल्याके उद्धार कैलन । मिथिलामे आके जखनी राम शिवधनुषके देखके उठावेके प्रयत्न करे लगलन तखनी ऊ बीचेसे टूट गेलै आउ जनकप्रतिज्ञाके अनुसार राम सीतासे विवाह कैलन । राम आउ सीताके विवाहके साथे साथे गुरु वशिष्ठ भरतके माण्डवीसे, लक्ष्मणके उर्मिलासे आउ शत्रुघ्नके श्रुतकीर्तिसे करवा देलन ।[9]
अयोध्याकाण्ड
[edit | edit source]रामके विवाहके कुछ समय पश्चात् राजा दशरथ रामके राज्याभिषेक कैल चाहलन । तखनि मन्थरा,जे कैकेयीके दासी हलै, ऊ कैकेयीके बुद्धिके फेर देलकै । मन्थराके सलाहसे कैकेयी कोपभवनमे चल गेलै । दशरथ जखनि मनावे ऐलन त कैकेयी उनकासे वरदान[10] माङ्गलन कि भरतके राजा बनावल जाये आउ रामके चौदह वर्षला वनवासमे भेज देल जाये ।
रामके साथे सीता आउ लक्ष्मणो वन चल गेलन । ऋङ्गवेरपुरमे निषादराज गुह तीनोके बड़ी सेवा कैलक । कुछ आनाकानी करेके बाद केवट तीनोके गङ्गा नदीके पार उतारकै । प्रयाग पहुँचके राम भारद्वाज मुनिसे भेँट कैलन । ओहाँसे राम यमुना स्नान करित वाल्मीकि ऋषिके आश्रम पहुँचलन । वाल्मीकिसे भेल मन्त्रणाके अनुसार राम, सीता आउ लक्ष्मण चित्रकूटमे निवास करे लगलन ।
अयोध्यामे पुत्रके वियोगके कारण दशरथके स्वर्गवास हो गेलै । वशिष्ठ भरत आउ शत्रुघ्नके उनकर ननिहालसे बोलवा लेलन । वापिस आवे पर भरत अपन माता कैकेयीके, ओकर कुटिलताला बड़ी भर्तस्नाके आउ गुरुजनके आज्ञानुसार दशरथके अन्त्येष्टि क्रिया कर देलन । भरत अयोध्याके राज्यके अस्वीकार कर देलन आउ रामके मनाके वापिस लावेला समस्त स्नेहीजनके साथे चित्रकूट चल गेलन । कैकेयियोके अपन कैल पर अत्यन्त पश्चाताप भेल । भरत आउ अन्य सब लोग रामके वापस अयोध्या जाके राज्य करेके प्रस्ताव रखलन जेकरा कि राम, पिताके आज्ञा पालन करे आउ रघुवंशके रीति निभावेला, अमान्य कर देलन ।
भरत अपन स्नेही जनके साथे रामके पादुकाके साथे लेके वापिस अयोध्या आ गेलन । ऊ रामके पादुकाके राज सिंहासन पर विराजित कर देलन आउ स्वयं नन्दिग्राममे निवास करे लगलन ।[11]
अरण्यकाण्ड
[edit | edit source]कुछ कालके पश्चात् राम चित्रकूटसे प्रयाण कैलन आउ ऊ अत्रि ऋषिके आश्रम पहुँचलन । अत्रि रामके स्तुतिके आउ उनकर पत्नी अनसूया सीताके पातिव्रत धर्मके मर्म समझौलन । ओहाँसे फिर राम आगे प्रस्थान कैलन आउ शरभंग मुनिसे भेँट कैलन । शरभङ्ग मुनि केवल रामके दर्शनके कामना से ओहाँ निवास कर रहथिन हल अतः रामके दर्शनके अपन अभिलाषा पूर्ण हो जायेसे योगाग्निसे अपन शरीरके जरा देलन आउ ब्रह्मलोकके गमन कैलन । आअ आगे बढ़े पर रामके स्थान स्थान पर हड्डी सबके ढेर लौकलै जिनकर विषयमे मुनि सब रामके बतौलन कि राक्षस अनेक मुनिके खा गेलै हे आउ उहे सब मुनिके हड्डी है । ई पर राम प्रतिज्ञा कैलन कि ऊ समस्त राक्षसके वध करके पृथ्वीके राक्षस विहीन कर देथिन । राम आउ आगे बढ़लन आउ पथमे सुतीक्ष्ण, अगस्त्य आदि ऋषिसे भेँट करैत दण्डक वनमे प्रवेश कैलन जने उनकर भेँट जटायुसे होलै । राम पञ्चवटीके अपन निवास स्थान बनौलन ।

पञ्चवटीमे रावणके बहिन शूर्पणखा आके रामसे प्रणय निवेदन-कैलकै । राम ई कहके कि ऊ अपन पत्नीके साथे हथिन आउ उनकर छोट भाई अकेले है ओकरा लक्ष्मण भिजुन भेज देलन । लक्ष्मण ओकर प्रणय-निवेदनके अस्वीकार करैत शत्रुके बहिन जानके ओकर नाक आउ कान काट देलन । शूर्पणखा खर-दूषणसे सहायताके माङ्ग कैलकै आउ ऊ अपन सेनाके साथे लड़ेला आ गेलै । लड़ाईमे राम खर-दूषण आउ ओकर सेनाके संहार कर देलन ।[12] शूर्पणखा जाके अपन भाई रावणसे शिकायत कैलकै । रावण बदला लेबेला मारीचके स्वर्णमृग बनाके भेजकै जेकर छालके माङ्ग सीता राम से कैलम । लक्ष्मणके सीताके रक्षाके आज्ञा देके राम स्वर्णमृग रूपी मारीचके मारेला ओकर पाछे चल गेलन । मारीच रामके हाथ मारल गेलै पर मरैत मरैत मारीच रामके आवाज बनाके ‘हा लक्ष्मण’ के क्रन्दन कैलकै जेकरा सुनके सीता आशंकावश होके लक्ष्मणके राम भिजुन भेज देलन । लक्ष्मणके जायेके बाद अकेले सीताके रावण छलपूर्वक हरण कर लेलकै आउ अपन साथे लङ्का ले गेलै । रस्तामे जटायु सीताके बचाबेला रावणसे युद्ध कैलकै आउ रावण तलवारके प्रहार से ओकरा अधमरा कर देलकै ।[13]
सीताके न पाके राम अत्यन्त दुःखी होलन आउ विलाप करे लगलन । रस्तामे जटायुसे भेँट होबेपर ऊ रामके रावण द्वारा अपन दुर्दशा होबे आउ सीताके हरके दक्षिण दिशा दन्ने ले जायेके बात बतौलक । ई सब बताबेके बाद जटायु अपन प्राण त्याग देलकै आउ राम ओकर अन्तिम संस्कार करके सीताके खोजमे सघन वनके भीतरे आगे बढ़लन । रस्तामे राम दुर्वासाके शापके कारण राक्षस बनल गन्धर्व कबन्धके वध करके ओकरा उद्धार कैलन आउ शबरीके आश्रम जा पहुँचलन जने कि ओकर देल जूठ बैरके ओकर भक्तिके वशमे होके खैलन । ई प्रकार राम सीताके खोजमे सघन वनके भीतरे आगे बढ़ित गेलन ।
किष्किन्धाकाण्ड
[edit | edit source]राम ऋष्यमूक पर्वतके भिरु आ गेलन । ऊ पर्वत पर अपन मन्त्री सहित सुग्रीव रहऽहलै । सुग्रीव ई आशङ्कामे कि कहुँ बालि ओकरा मारे लागी ऊ दोनो वीरके न भेजकै होत, हनुमान् के राम आउ लक्ष्मणके विषयमे जानकारी लेवेला ब्राह्मणके रूपमे भेजकै । ई जानेके बाद कि उनका बालि न भेजकै है हनुमान् राम आउ सुग्रीवमे मित्रता करवा देलन । सुग्रीव रामके सान्त्वना देलक कि जानकी जी मिल जैतन आउ उनका खोजेमे ऊ सहायता देतन, साथे अपन भाई बालिके अपन ऊपरे कैल गेल अत्याचारके विषयमे बतौलक । राम बालिके वध करके सुग्रीवके किष्किन्धाके राज्य आउ बालिके पुत्र अङ्गदके युवराजके पद दे देलक ।[14]
राज्य प्राप्तिके बाद सुग्रीव विलासमे लिप्त हो गेल आउ वर्षा एवं शरद् ऋतु व्यतीत हो गेलै । रामके नाराजगी पर सुग्रीव वानरके सीताके खोजला भेजलक । सीताके खोजमे गेल वानरके एक गुफामे एक तपस्विनीके दर्शन होलै । तपस्विनी खोज दलके योगशक्तिसे समुद्रतट पर पहुँचा देलक जन्ने उनकर भेँट सम्पातीसे होलै । सम्पाती वानरके बतौलक कि रावण सीताके लङ्का अशोकवाटिकामे रखकै हे । जाम्बवन्त हनुमान् के समुद्र लाङ्घेला उत्साहित कैलन ।
सुन्दरकाण्ड
[edit | edit source]हनुमान् लङ्का दन्ने प्रस्थान कैलन । सुरसा हनुमान् के परीक्षा लेलकै[15] आउ उनका योग्य आउ सामर्थ्यवान पाके आशीर्वाद देलकै । मार्गमे हनुमान् परछायी पकड़े वाली राक्षसीके वध कैलन आउ लङ्किनी पर प्रहार करके लङ्कामे प्रवेश कैलन । उनकर विभीषणसे भेँट होलै । जखनि हनुमान् अशोकवाटिकामे पहुँचलन त रावण सीताके धमकावैत हलै । रावणके जायेपर त्रिजटा सीताके सान्तवना देलकै । एकान्त होवेपर हनुमान् जी सीता मातासे भेँट करके उनका रामके मुद्रिका देलन । हनुमान् अशोकवाटिकाके विध्वंस करके रावणके पुत्र अक्षय कुमारके वध कर देलन । मेघनाथ हनुमान् के नागपाशमे बान्धके रावणके सभामे ले गेलै ।[16] रावणके प्रश्नके उत्तरमे हनुमान् अपन परिचय रामके दूतके रूपमे देलन । रावण हनुमान् के पोँछमे तेलमे डूबल कपड़ा बान्धके आग लगा देलकै, एकरा पर हनुमान् लङ्काके दहन कर देलन ।[17]
हनुमान् सीता भिजुन पहुँचलन । सीता अपन चूड़ामणि देके उनका विदा कैलन । ऊ वापस समुद्र पार आके सब वानरसे मिललन आउ सब वापिस सुग्रीव भिजुन चल गेलन । हनुमान् के कार्यसे राम अत्यन्त प्रसन्न भेलन । राम वानरके सेनाके साथे समुद्रतट पर पहुँचलन । ओन्ने विभीषण रावणके समझौलक कि रामसे बैर न लेथिन, एकरा पर रावण विभीषणके अपमानित करके लङ्कासे निकाल देलन । विभीषण रामके शरणमे आ गेलन आउ राम उनका लङ्काके राजा घोषित कर देलन । राम समुद्रसे रस्ता देवेके विनती कैलन । विनती न मानेपर राम क्रोध कैलन आउ उनकर क्रोधसे भयभीत होके समुद्र स्वयं आके रामके विनती करके पश्चात् नल आउ नीलके द्वारा सेतु बनावेके उपाय बतौलकै ।
लङ्काकाण्ड (युद्धकाण्ड)
[edit | edit source]जाम्बवन्तके आदेशसे नल आउ नील दुनो भाई वानर सेनाके सहायतासे समुद्र पर पुल बान्ध देलक ।[18] श्रीराम श्री रामेश्वरके स्थापना करके भगवान् शङ्करके पूजा कैलन आउ सेना सहित समुद्रके पार उतर गेलन । समुद्रके पार जाके राम डेरा डाललन । पुल बन्ध जाए आउ रामके समुद्रके पार उतर जायेके समाचारसे रावण मनमे अत्यन्त व्याकुल होलै । मन्दोदरीके रामसे बैर न लेवेला समझावहुँ पर रावणके अहङ्कार न गेलै । एन्ने राम अपन वानरसेनाके साथे मेरु पर्वत पर निवास करे लगलन । अङ्गद रामके दूत बनके लङ्कामे रावण भिजुन गेलन आउ ओकरा रामके शरणमे आवेके सन्देश देलन किन्तु रावण न मानलक ।
शान्तिके सब प्रयास असफल हो जाए पर युद्ध आरम्भ हो गेलै । लक्ष्मण आउ मेघनादके मध्य घोर युद्ध होलै । शक्तिबाणके वारसे लक्ष्मण मूर्छित हो गेलन । उनकर उपचारला हनुमान् सुषेण वैद्यके ले ऐलन आउ सञ्जीवनी लावेला चल गेलन । गुप्तचरसे समाचार मिलेपर रावण हनुमान् के कार्यमे बाधाला कालनेमिके भेजकै जेकर हनुमान् वध कर देलन । औषधिके पहचान न होवेके कारण हनुमान् पूरा पर्वतेके उठाके वापस चललन । मार्गमे हनुमान् के राक्षस होवेके सन्देहमे भरत बाण मारके मूर्छित कर देलन परन्तु यथार्थ जानेपर अपन बाण पर बैठाके वापिस लङ्का भेज देलन । एन्ने औषधि आवेमे विलम्ब देखके राम प्रलाप करे लगलन । सही समय पर हनुमान् औषधि लेके आ गेलन आउ सुषेणके उपचारसे लक्ष्मण स्वस्थ हो गेलन ।[19]
रावण युद्धला कुम्भकर्णके जगौलक । कुम्भकर्णो रावणके रामके शरणमे जायेके असफल मन्त्रणा देलक । युद्धमे कुम्भकर्ण रामके हाथ परमगति प्राप्त कैलकै । लक्ष्मण मेघनादसे युद्ध करके ओकर वध कर देलन । राम आउ रावणके मध्य अनेक घोर युद्ध होलै आउ अन्तमे रावण रामके हाथ मारल गेलै ।[20] विभीषणके लङ्काके राज्य सौंपके राम, सीता आउ लक्ष्मणके साथे पुष्पकविमान पर चढ़के अयोध्या लागी प्रस्थान कैलन । [21]
उत्तरकाण्ड
[edit | edit source]उत्तरकाण्ड राम कथाके उपसंहार है । सीता, लक्ष्मण आउ समस्त वानरसेनाके साथे राम अयोध्या वापस पहुँचलन । रामके भव्य स्वागत होलै, भरतके साथे सर्वजनमे आनन्द व्याप्त हो गेलै । वेद आउ शिवके स्तुतिके साथे रामके राज्याभिषेक होलै । अभ्यागतके विदाई देल गेलै । राम प्रजाके उपदेश देलन आउ प्रजा कृतज्ञता प्रकट कैलन । चारो भाईके दु दु पुत्र होलै । रामराज्य एक आदर्श बन गेलै ।
उपरोक्त बातके साथे साथे गोस्वामी तुलसीदास जी उत्तरकाण्डमे श्रीराम-वशिष्ठ संवाद, नारद जी के अयोध्या आके रामचन्द्र जी के स्तुति कैल, शिव-पार्वती संवाद, गरुड़ मोह आउ गरुड़ जी के काकभुशुण्डि जी से रामकथा एवं राम-महिमा सुनल, काकभुशुण्डि जी के पूर्वजन्मके कथा, ज्ञान-भक्ति निरूपण, ज्ञानदीपक आउ भक्तिके महान महिमा, गरुड़के सात प्रश्न आउ काकभुशुण्डि जी के उत्तर आदि विषयोके विस्तृत वर्णन कैल है ।
जन्ने तुलसीदास जी उपरोक्त वर्णन लिखके रामचरितमानसके समाप्त कर देलन हे ओहीँ आदिकवि वाल्मीकि अपन रामायणमे उत्तरकाण्डमे रावण आउ हनुमान् के जन्मके कथा,[22] सीता का निर्वासन,[23] राजा नृग, राजा निमि, राजा ययाति आउ रामराज्यमे कुत्ताके न्यायके उपकथा सब,[24] लवकुशके जन्म,[25] रामके द्वारा अश्वमेघ यज्ञके अनुष्ठान आउ ऊ यज्ञमे उनकर पुत्र लव आउ कुशके द्वारा महाकवि वाल्मीकि रचित रामायण गायन, सीताके रसातल प्रवेश,[26] लक्ष्मणके परित्याग,[27] ५१५ ५१८-ओ के वर्णन कैल है । वाल्मीकि रामायणमे उत्तरकाण्डके समापन रामके महाप्रयाणके बादो होलै हे ।[28] उत्तरकाण्डके लेके ढेर प्रकारके विवादो है । ऐसन मानल जा है कि उत्तरकाण्ड मूल वाल्मीकि रामायणके भाग न है आउ एकरामे ढेर कहानी बादमे जोड़ल गेलै जे अलग अलग लेखक द्वारा लिखल गेल कहानीके जोड़के तैयार कैल गेलै हे । उत्तरकाण्ड मूल रामायणके भाग न है एकरा लेके ढेर विद्वान एकमत है ।
आदर्श पुरुषके गुण
[edit | edit source]वाल्मीकि रामायणमे श्रीरामके सत्रह गुण बतावल गेलै हे, जे लोग सबमे नेतृत्व क्षमता बढ़ावे आउ कौनो क्षेत्रमे अगुवाई करेके अहम सूत्र है । वाल्मीकि जी नारद जी से प्रश्न कैलन कि सम्प्रति ई लोकमे ऐसन कौन मनुष्य है जे गुणवान, वीर्यवान, धर्मज्ञ, कृतज्ञ, सत्यवादी आउ दृढ़व्रत होवेके साथे साथे सदाचारसे युक्त होवे । जे सब प्राणीके हितकारक होवे, साथे विद्वान, समर्थ आउ प्रियदर्शन होवे ।
- कोऽन्वस्मिन् साम्प्रतं लोके गुणवान् कश्च वीर्यवान् ।
- धर्मज्ञश्च कृतज्ञश्च सत्यवाक्यो दृढव्रतः ॥१-१-२
- चारित्रेण च को युक्तः सर्वभूतेषु को हितः ।
- विद्वान् कः कस्समर्थश्च कैश्चैकप्रियदर्शनः ॥१-१-३
- आत्मवान् को जितक्रोधो द्युतिमान् कोऽनसूयकः ।
- कस्य बिभ्यति देवाश्च जातरोषस्य संयुगे ॥१-१-४
उत्तरमे नारद जी कहऽहथिन कि इक्ष्वाकु वंश मे उत्पन्न श्री राममे ई सब गुण है ।[29]
- श्रीरामके सोलह गुण, जे आदर्श पुरुषमे होवेके चाही-
- गुणवान्
- वीर्यवान् (वीर)
- धर्मज्ञ (धर्मके जानेवाला)
- कृतज्ञ (दोसर द्वारा कैल नीक कार्यके न भूलाए वाला)
- सत्यवाक्य (सत्य बोलेवाला)
- दृढव्रत (दृढ व्रती)
- चरित्रवान्
- सर्वभूतहितः (सब प्राणीके हित करेवाला)
- विद्वान्
- समर्थ
- सदैक प्रियदर्शन (सदा प्रियदर्शी)
- आत्मवान् (धैर्यवान)
- जितक्रोध (जे क्रोधके जीत लेलकै होवे)
- द्युतिमान् (कान्तियुक्त)
- अनसूयक (ईर्ष्याके दूर रखेवाला)
- बिभ्यति देवाश्च जातरोषस्य संयुगे (जेकर रुष्ट होवे पर युद्धमे देवतो भयभीत हो जा हथिन)
रामायणके टीका
[edit | edit source]वाल्मीकि रामायणके तीन पाठ प्राप्त होलै हे-
- (१) दाक्षिणात्य पाठ
- (२) गौडीय पाठ
- (३) पश्चिमोत्तरीय पाठ या काश्मीरिक संस्करण (अमृत कतक टीका)
ई तीन पाठमे केवल पाठभेदे न प्राप्त होवै अपितु कहुँ-कहुँ एकर सर्गो भिन्न-भिन्न है । रमायणके ३० टीका प्राप्त होलै है । प्रमुख टीका निम्नलिखित है-
टीकाके नाम | टीकाकार |
---|---|
रामानुजीयम् | |
सर्वार्थसार | |
रामायणदीपिका | |
बृहदविवरण | |
लघुविवरण | |
रामायणतत्वदीपिका (महेश्वरतीर्थी) | महेश तीर्थ |
भूषण (गोविन्दराजीय ) | गोविन्दराज |
वाल्मीकिहृदय | अहोबल |
अमृतकतक | माधवयोगी |
रामायणतिलक | |
रामायणशिरोमणि | |
मनोहर | |
धर्माकूतम् | त्र्यम्बक मखिन् |
तनिश्लोकी | पेरियर वाचाम्बिल्लै |
विषमपदविवृति | |
रामायणभूषण | प्रबल मुकुन्दसूरि |
एकरो देखी
[edit | edit source]सन्दर्भ
[edit | edit source]- ↑ 'रामायणमादिकाव्यम्', श्रीस्कन्दपुराणे उत्तरखण्डे रामायणमाहात्म्ये- १-३५ तथा ५-६१, श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण भाग-१, गीताप्रेस गोरखपुर, संस्करण-१९९६ ई०, पृष्ठ-९ एवं २५.
- ↑ ध्वन्यालोकः, १-५ (कारिका एवं वृत्ति) तथा ४-५ (वृत्ति), ध्वन्यालोक, हिन्दी व्याख्याकार- आचार्य विश्वेश्वर सिद्धान्तशिरोमणि, ज्ञानमंडल लिमिटेड, वाराणसी, संस्करण-१९८५ ई०, पृष्ठ-२९-३० एवं ३४५ तथा ध्वन्यालोकः (लोचन सहित) हिन्दी अनुवाद- जगन्नाथ पाठक, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, संस्करण-२०१४, पृष्ठ-८६ एवं ८९ तथा पृ०-५७०.
- ↑ Presa, Iṇḍiyana (1969). Sarasvatī. 70. the University of California. प॰ 417.
- ↑ Pattanaik, Devdutt (8 August 2020). "Was Ram born in Ayodhya". mumbaimirror.
- ↑ 5.0 5.1 Template:Wp/mag/स्रोत किताब
- ↑ "How did the 'Ramayana' and 'Mahabharata' come to be (and what has 'dharma' got to do with it)?".
- ↑ ‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ १६३
- ↑ ‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ १८०
- ↑ ‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भण्डार, दिल्ली पृष्ठ ९२-९३
- ↑ ‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भण्डार, दिल्ली पृष्ठ 120-128
- ↑ ‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ 554-557
- ↑ ‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भण्डार, दिल्ली पृष्ठ 251-263
- ↑ ‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ 603-606
- ↑ ‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ 634-638
- ↑ ‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ 658-659
- ↑ ‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ 668-672
- ↑ ‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ 678-679
- ↑ ‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ 709-711
- ↑ ‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ 751-759
- ↑ ‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ 802-807
- ↑ ‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भण्डार, दिल्ली पृष्ठ 455-459
- ↑ ‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भण्डार, दिल्ली पृष्ठ 463-475
- ↑ ‘वाल्मीकीय रामायण’‘, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भण्डार, दिल्ली पृष्ठ 480-483
- ↑ ‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भण्डार, दिल्ली पृष्ठ 485-491
- ↑ ‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भण्डार, दिल्ली पृष्ठ 495-496
- ↑ ‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भण्डार, दिल्ली पृष्ठ 508-512
- ↑ ‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भण्डार, दिल्ली पृष्ठ 515-518
- ↑ ‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भण्डार, दिल्ली पृष्ठ 518-520
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- इक्ष्वाकुवंशप्रभवो रामो नाम जनैः श्रुतः ।
- नियतात्मा महावीर्यो द्युतिमान धृतिमान वशी ॥
- बुद्धिमान नीतिमान वाग्मी श्रीमान शत्रुनिबर्हणः ।
- धर्मज्ञस्सत्यसन्धश्च प्रजानां च हिते रतः ॥
- यशस्वी ज्ञानसम्पन्नः शुचिर्वश्यस्समाधिमान ।
- रक्षिता जीवलोकस्य धर्मस्य परिरक्षिता ॥
- सर्वदाऽभिगतः सद्भिः समुद्र इव सिन्दुभिः ।
- आर्यस्सर्वसमश्चैव सदैकप्रियदर्शनः ॥
- स च सर्वगुणोपेतः कौसल्यानन्दवर्द्धनः ।
- समुद्र इव गाम्भीर्ये स्थैर्ये च हिमवानिव ॥
- विष्णुना सदृश्यो वीर्ये सोमवत प्रियदर्शनः ।
- धनदेन समस्त्यागे सत्ये धर्म इवापरः ॥
- इक्ष्वाकुवंशप्रभवो रामो नाम जनैः श्रुतः ।