Wp/mag/भारतीय दर्शन

भारतमे 'दर्शन' ऊ विद्याके कहल जा है जेकर द्वारा तत्वके ज्ञान हो सके । 'तत्व दर्शन' या 'दर्शन' के अर्थ है तत्वके ज्ञान । मानवके दुखके निवृति ला आउ/या तत्व ज्ञान करावहीँला भारतमे दर्शनके जन्म होलै हे । हृदयके गाँठ तभिये खुलऽहै आउ शोक तथा संशय तभिये दूर होवऽ है जखनी एक सत्यके दर्शन होवऽहै । मनु के कथन है कि सम्यक दर्शन प्राप्त होवे पर कर्म मनुष्य के बन्धनमे न डाल सकै तथा जिनका सम्यक दृष्टि न है उहे संसारके महामोह आउ जालमे फंस जा हथिन । भारतीय ऋषि जगत् के रहस्यके अनेक कोणसे समझेके प्रयास कैलथिन हे । दर्शन ग्रन्थ के दर्शनशास्त्र भी कहल जा है । ई शास्त्र शब्द ‘शासु अनुशिष्टौ’ से निष्पन्न है ।
भारतीय दार्शनिक के बारे मे टी एस एलियट कहलकै हल-[1]
- Indian philosophers subtleties make most of the great European philosophers look like school boys.
- (अर्थ: भारतीय दार्शनिक के सूक्ष्मताके देखित यूरोपके अधिकांश महान दार्शनिक स्कूलके लैकन नियन लगऽहै ।)
भारतीय दर्शन कौन प्रकार आउ कौन परिस्थितिमे अस्तित्व मे ऐलै, कुछो प्रामाणिक रूपसे न कहल जा सकऽहै । किन्तु एतना स्पष्ट है कि उपनिषद कालमे दर्शन एक पृथक शास्त्र के रूपमे विकसित होवे लगलै हल ।
इहो देखी
[edit | edit source]सन्दर्भ
[edit | edit source]- ↑ Jeffry M. Perl and Andrew P. Tuck (1985). "The Hidden Advantage of Tradition: On the Significance of T. S. Eliot's Indic Studies". Philosophy East & West. University of Hawaii Press. 35. Retrieved 2012-08-13.