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Wp/mag/कृष्ण

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श्रीकृष्ण
करुणा, ज्ञान आउ प्रेमके ईश्वर [1][2]
कृष्ण
श्री मारिमान मन्दिर, सिङ्गापुरमे यदुवंशी श्रीकृष्ण प्रतिमा
देवनागरीकृष्ण
संस्कृत लिप्यन्तरणकृष्णः
तमिल्लिपिகிருஷ்ணா
तमिल् लिप्यन्तरणKiruṣṇā
कन्नडलिपिಕೃಷ್ಣ
कन्नड लिप्यन्तरणKr̥ṣṇa
सम्बन्धस्वयं भगवान्, परमात्मन, गोप, विष्णु, राधा कृष्ण[3]
निवासस्थानगोलोक, वृन्दावन, द्वारका, गोकुल, वैकुण्ठ
अस्त्रसुदर्शन चक्र
युद्धकुरुक्षेत्र युद्ध
जीवनसङ्गीराधा, रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती, नग्नजित्ती, लक्ष्मणा, कालिन्दी, भद्रा [4][note 1]
माता-पितादेवकी (माता) आउ वसुदेव (पिता), यशोदा (पालक माता) आउ नन्दबाबा (पालक पिता)
भाई-बहिनबलराम, सुभद्रा
शास्त्रभागवत पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, विष्णु पुराण, महाभारत, भगवद् गीता, गीत गोविंद, गर्ग संहिता, हरिवंश
त्योहारजन्माष्टमी, होली
बालकृष्णके लड्डु गोपाल रूप, जिनकर सदियोसे घरे घरे पूजा कैल जाइत रहलै हे ।

श्रीकृष्ण, हिन्दुधर्ममे भगवान् हथ । ऊ बिष्णुके अठमा अवतार मानल गेलन हे । कन्हैया, माधव, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश वा द्वारकाधीश, बासुदेव आदि नामोसे उनखा जानल जाहे । कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी सम्पदासे सुसज्जित महान पुरुष हलन । उनखर जनम द्वापरजुगमे होएल हल । उनखा ऊ जुगके सर्वश्रेष्ठ पुरुष, युगपुरुष वा युगावतारके स्थान देल गेलहे । कृष्णके समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत् आउ महाभारतमे कृष्णके चरित्र बिस्तृत रूपसे लिखल गेलहे । भगवद्गीता कृष्ण आउ अर्जुनके संवाद हे जे ग्रन्थ आझो पूरा बिश्वमे लोकप्रिय हे । ई उपदेशला कृष्णके जगद्गुरुके सम्मानो देल जाहे ।

कृष्ण वसुदेव आउ देवकीके ८मा सन्तान हलथिन । देवकी कंसके बहिन हलथिन । कंस एक अत्याचारी राजा हलै । ऊ आकाशवाणी सुनकै हल कि देवकीके अठमा पुत्र द्वारा ऊ मारल जैतै । एकरासे बचेला कंस देवकी आउ वसुदेवके मथुराके कारागारमे डाल देलकै । मथुराके कारागारेमे भादो मासके कृष्ण पक्षके अष्टमीके उनकर जन्म होलै । कंसके डरसे वसुदेव नवजात बालकके रातहीँमे यमुना पार गोकुलमे यशोदाके एहाँ पहुँचा देलन । गोकुलमे उनकर लालन-पालन होलै हल । यशोदा आउ नन्द उनकर पालक माता-पिता हलथिन ।

बाल्यावस्थेमे ऊ बड़-बड़ काम कैलन जे कौनो सामान्य मनुष्यला सम्भव न हलै । अपन जन्मके कुछ समय बादे कंस द्वारा भेजल राक्षसी पूतनाके वध कैलन, ओकर बाद शकटासुर, तृणावर्त आदि राक्षसके वध कैलन । बादमे गोकुल छोड़के नन्दगाँव आ गेलन । ओहौँ पर ऊ ढेर लीला कैलन जेकरामे गोचारण लीला, गोवर्धन लीला, रासलीला आदि मुख्य है । एकर बाद मथुरामे मामा कंसके वध कैलन । सौराष्ट्रमे द्वारका नगरीके स्थापना कैलन आउ ओहाँ अपन राज्य बसौलन । पाण्डवके सहयोग कैलन आउ विभिन्न सङ्कटसे उनकर रक्षा कैलन । महाभारतके युद्धमे ऊ अर्जुनके सारथीके भूमिका निभौलन आउ रणक्षेत्रेमे ऊ उपदेश देलन । १२४ वर्षके जीवनकालके बाद ऊ अपन लीला समाप्त कैलन । उनकर अवतार समाप्तिके तुरन्त बाद परीक्षितके राज्यके कालखण्ड आवऽ है । राजा परीक्षित, जे अभिमन्यु आउ उत्तराके पुत्र आउ अर्जुनके पोता हलन, के समयेसे कलियुगके आरम्भ मानल जा है ।

हिन्दुके इतिहास, साहित्य आउ धर्मके एक दृश्य, जेकरामे उनकर शिष्टाचार आउ रीति-रिवाजके एक मिनट वर्णन आउ उनकर प्रमुख कार्य (१८६३) (१४७ ९ १५५०७६२) से अनुवाद शामिल है
भगवान् कृष्णके सुन्दरता देखावित एक छवि
माता यशोदाके साथे श्रीकृष्ण
माता यशोदाके साथे श्रीकृष्ण

नाम आउ उपशीर्षक

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"कृष्ण" एक संस्कृत शब्द है, जे "करिया", "अन्धार" या "गाढ़ा नील" के समानार्थी है ।[6] "अन्धकार" शब्दसे एकर सम्बन्ध ढलित चन्द्रमाके समयके कृष्ण पक्ष कहल जाहुँमे स्पष्ट लोकऽ है ।[6] ई नामके अनुवाद कहुँ-कहुँ "अति-आकर्षक" के रूपोमे कैल गेलै हे ।[7]

श्रीमदभागवत पुराणके वर्णन अनुसार कृष्ण जखनि बाल्यावस्थामे हलथिन तखनि नन्दबाबाके घर आचार्य गर्गाचार्य द्वारा उनकर नामकरण संस्कार होलै हल । नाम रखित खनि गर्गाचार्य बतौलन कि, 'ई पुत्र प्रत्येक युगमे अवतार धारण करऽ है । कहियो एकर वर्ण श्वेत, कहियो लाल, कहियो पियर होवऽ है । पूर्वके प्रत्येक युगमे शरीर धारण करित एकर तीन वर्ण हो गेलै हे । ई बेर कृष्ण वर्णके होलै हे, अतः एकर नाम कृष्ण होतै ।'[8] वसुदेवके पुत्र होवेके चलते उनका 'वासुदेव' कहल जा है । "कृष्ण" नामके अतिरिक्तो उनका देर अन्य नामसे जानल जाइत है, जे उनकर ढेर विशेषताके दर्शावऽ है । सबसे व्यापक नाममे मोहन, गोविन्द, माधव,[9] आउ गोपाल प्रमुख है ।[10][11]

चित्रण

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कृष्णजी भारतीय संस्कृतिमे ढेर विधाके प्रतिनिधित्व करऽ हथिन । उनकर चित्रण आमतौर पर विष्णु नियन कृष्ण, करिया या नील रङ्गके त्वचाके साथे कैल जा है ।[12] हालाँकि प्राचीन आउ मध्ययुगीन शिलालेख, भारत आउ दक्षिणपूर्व एशिया दुनोमे, आउ पत्थरके मूर्तीमे उनका प्राकृतिक रङ्गमे चित्रित कैलकै हे, जेकरासे ऊ बनल है । कुछ ग्रन्थमे उनकर त्वचाके काव्य रूपसे जाम्बुल (जामुन, बैङ्गनी रङ्गके फल) के रङ्गके रूपमे वर्णित कैल गेलै हे ।[13][14]

कृष्णके अक्सर मोर-पङ्ख वाला पुष्प या मुकुट पेहेनके चित्रित कैल जा है, आउ अक्सर बासुरी (भारतीय बासुरी) बजावैत उनकार चित्रण होलै हे । ई रूपमे आमतौर पर त्रिभन्ग मुद्रामे दोसराके सामने एक गोड़के दुसरका गोड़ पर डालल चित्रित है । कहियो-कहियो ऊ गाय या बछड़ाके साथ होवऽ हथिन, जे चरवाह गोविन्दके प्रतीकके दर्शावऽ है ।[15][16]

अन्य चित्रणमे ऊ महाकाव्य महाभारतके युद्धके दृश्यके एक भाग हथिन । ओहाँ उनका एक सारथीके रूपमे देखावल जा है, विशेष रूपसे जखनि ऊ पाण्डव राजकुमार अर्जुनके सम्बोधित करैत हथिन, जे प्रतीकात्मक रूपसे हिन्दुधर्मके एक ग्रन्थ,भगवद्गीताके सुनावऽ हथिन । ई सब लोकप्रिय चित्रणमे कृष्ण कहियो पथ प्रदर्शकके रूपमे सामनेमे प्रकट होवऽ हथिन, या त दूरदृष्टाके रूपमे, कहियो रथके चालकके रूपमे ।[17][18]

कृष्णके वैकल्पिक चित्रणमे उनका एक बालक (बाल कृष्ण) के रूपमे देखावल जा है, एक लैका अपन हाथ आउ ठेहुना पर रेङ्गैत, नृत्य करैत, साथी मित्र ग्वाल बालके चोराके मक्खन देइत (मक्खन चोर), लड्डूके अपन हाथमे लेके चलैत (लड्डू गोपाल) अथवा प्रलयके समय बरगदके पत्ता पर तैरैत एक अलौकिक शिशु जे अपन गोड़के अङ्गुरीके चूसैत प्रतीत होवऽ है (ऋषि मार्कण्डेय द्वारा विवरणित ब्रह्माण्ड विघटन) ।[19][20]

कृष्णके प्रतिमामे क्षेत्रीय विविधता उनकर विभिन्न रूपमे देखल जा है, जैसे ओडिशामे जगन्नाथ, महाराष्ट्रमे विट्ठल या विठोबा,[21][22][23][23] राजस्थानमे श्रीनाथ जी, गुजरातमे द्वारकाधीश आउ केरलमे गुरुवायरुप्पन ।[24] अन्य चित्रणमे उनका राधाके साथे देखावल जा है जे राधा आउ कृष्णके दिव्य प्रेमके प्रतीक मानल जा है । उनका कुरुक्षेत्र युद्धमे विश्वरूपोमे देखावल जा है जेकराम उनकर ढेर मुख है आउ सब लोग उनकर मुखमे जाइत हथिन । अपन मित्र सुदामाके साथहुँ उनका देखावल जा है जे मित्रताके प्रतीक है ।

वास्तुकलामे कृष्ण चिह्न एवं मूर्तिला दिशानिर्देशके वर्णन मध्यकालीन युगमे हिन्दु मन्दिर कला जैसे वैखानस अगम, विष्णु धर्मोत्तर पुराण, बृहत संहिता आउ अग्नि पुराणमे वर्णित है ।[25] एही प्रकार मध्यकालीन युगके शुरुआती तमिल ग्रन्थमे कृष्ण आउ रुक्मणीके मूर्तियो सम्मिलित है । ई सब दिशानिर्देशके अनुसार बनावल ढेर मूर्ति सरकारी सङ्ग्रहालय,चेन्नैके सङ्ग्रहमे है ।

१७५५ के आसपास, भारतीय चित्रकार द्वारा बनाया गेल चित्र

ऐतिहासिक आउ साहित्यिक स्रोत

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एक व्यक्तित्वके रूपमे कृष्णके विस्तृत विवरण सबसे पहिले महाकाव्य महाभारतमे लिखल गेलै हे,[26] जेकरामे कृष्णके विष्णुके अवतारके रूपमे दर्शावल गेलै हे । महाकाव्यके मुख्य कहानीमे से ढेर कृष्ण केन्द्रीय हथिन । श्री भगवत गीताके निर्माण करे वाला महाकाव्यके छठा पर्व (भीष्म पर्व) के अठारहमा अध्यायमे युद्धके मैदानमे श्रीकृष्ण अर्जुनके ज्ञान दे हथिन । महाभारतके बादके परिशिष्टमे हरिवंशमे कृष्णके बचपन आउ युवावस्थाके एक विस्तृत संस्करण है ।[27]

भारतीय-यूनानी मुद्रण

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१८० ईसा पूर्व लगभग हिन्द-यूनानी राजा एगैथोकल्स देवताके छवी पर आधारित कुछ सिक्का जारी केलन हल । भारतमे अखनि ऊ सब सिक्काके वैष्णव दर्शन से सम्बन्धित मानल जा है ।[28][29] सिक्का पर प्रदर्शित देवताके विष्णुके अवतार बलराम - सङ्कर्षणके रूपमे देखल जा है जेकरामे गदा आउ हर एवं वासुदेव-कृष्ण, शङ्ख आउ सुदर्शन चक्र दर्शावल है ।

प्राचीन संस्कृत व्याकरण पतञ्जलि अपन महाभाष्यमे भारतीय ग्रन्थके देवता कृष्ण आउ उनकर सहयोगी सबके ढेर सन्दर्भके उल्लेख कैलन है । पाणिनीके श्लोक ३.१.२६ पर अपन टिप्पणीमे, ऊ कंसवध अथवा कंसके हत्योके प्रयोग करऽ हथिन, जे कि कृष्णसे सम्बन्धित किंवदन्तीके एक महत्वपूर्ण अङ्ग है ।[30][31]

हेलीडियोरस स्तम्भ आउ अन्य शिलालेख

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मध्य भारतीय राज्य मध्यप्रदेशमे औपनिवेशिक कालके पुरातत्वविद एक ब्राह्मी लिपिमे लिखल शिलालेखके साथे एक स्तम्भके खोज कैलन हल । आधुनिक तकनीकके उपयोग करके, एकरू १२५ आउ १०० ईसा पूर्वके बीचके घोषित कैल गेसै हे आउ ई निष्कर्ष निकालल गेलै कि ई एक हिन्द-यूनानी प्रतिनिधि द्वारा एक क्षेत्रीय भारतीय राजाला बनवावल गेलै हल जे यूनानी राजा एण्टिलासिडासके एक राजदूतके रूपमे उनकर प्रतिनिधि हलै । एही हिन्द-यूनानीके नाम अखनि एकरा हेलेडियोरस स्तम्भके रूपमे जानल जा है । एकर शिलालेख "वासुदेव" ला समर्पण है जे भारतीय परम्परामे कृष्णके दोसर नाम है । ढेर विद्वानके मत है कि एकरामे "वासुदेव" नामक देवताके उल्लेख है, काहेकि ई शिलालेखमे कहल गेलै हे कि ई "भागवत हेलियोडोरस" द्वारा बनावल गेलै हल आउ ई "गरुड़ स्तम्भ" (दुनो विष्णु-कृष्ण-सम्बन्धित शब्द है) । एकर अतिरिक्त शिलालेखके एक अध्यायमे कृष्णसे सम्बन्धित कवितो सम्मिलित है । महाभारतके अध्याय ११.७ के सन्दर्भ देइत बतावल गेलै हे कि अमरता आउ स्वर्गके रस्ता सही ढङ्गसे तीन गुणके जीवन जीएला है: स्व- संयम (दमः), उदारता (त्याग) आउ सतर्कता (अप्रामदाह) ।[32][33]

हेलियोडोरस शिलालेख एकमात्र प्रमाण न है । तीन हाथीबाड़ा शिलालेख आउ एक घोसूण्डी शिलालेख, जे कि राजस्थान राज्यमे स्थित है[34][35][36] आउ आधुनिक कार्यप्रणालीके अनुसार जेकर समयकाल १९मा सदी ईसा पूर्व है ओकरोमे कृष्णके उल्लेख कैल गेलै हे । पहिला सदी ईसा पूर्व सङ्कर्षण (कृष्णके एक नाम) आउ वासुदेवके उल्लेख करैत उनकर पूजाला एक संरचनाके निर्माण कैल गेलै हल । ई चार शिलालेख प्राचीनतम ज्ञात संस्कृत शिलालेखमे से एक है ।[37] ढेर पुराणमे कृष्णके जीवन कथाके बतावल या कुछ एकरा पर प्रकाश डालल गेलै हे । दु पुराण, भागवत पुराण आउ विष्णु पुराणमे कृष्णके कहानीके सबसे विस्तृत जानकारी है,[38] किन्तु ई आउ अन्य ग्रन्थमे कृष्णके जीवन कथा अलगे-अलगे है आउ एकरामे महत्वपूर्ण असङ्गति है । भागवत पुराणमे बारह पुस्तक उप-विभाजित है जेकरामे ३३२ अध्याय, संस्करणके आधार पर १६,००० आउ १८,००० छन्द के बीच सञ्चित है ।[39][40] पाठके दसमा पुस्तक, जेकरामे लगभग ४००० छन्द (~ २५ %) शामिल है आउ कृष्णके बारेमे किंवदन्तिके समर्पित है, ई पाठके सबसे लोकप्रिय आउ व्यापक रूपसे अध्ययन केल जाए वाला अध्याय है ।

जीवन आउ लीला

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अवतरण एवं महाप्रयाण

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कृष्णके जन्म भादो माहमे कृष्ण पक्षमे अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्रके दिन रातके १२ बजे होलै हल ।[41] कृष्णके जन्मदिन जन्माष्टमीके नामसे भारत, नेपाल, अमेरिका सहित विश्वभरमे मनावल जा है । कृष्णके जन्म मथुराके कारागारमे होलै हल । ऊ माता देवकी आउ पिता वासुदेवके ८मा सन्तान हलथिन । श्रीमद भागवतके वर्णन अनुसार द्वापरयुगमे भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरामे राज करऽ हलथिन । उनकर एक आततायी पुत्र कंस हलै आउ उनकर एक बहिन देवकी हलथिन । देवकीके विवाह वसुदेवके साथे होलै हल । कंस अपन पिताके कारागारमे डाल देलकै आउ स्वयं मथुराके राजा बन गेलै । कंसके मृत्यु उनकर भानजे, देवकीके ८मा सन्तानके हाथ होवेला हलै । कंस अपन बहिन आउ बहनोइयो मथुराके कारागारमे कैद कर देलकै आउ एकके बाद एक देवकीके सब सन्तानके मार देलकै । कृष्णके जन्म अधरतियाके होलै तखनि कारागृहके केबाड़ी अपनहीँ खुल गेलै आउ सब सिपाही सुत गेलै । वासुदेवके हाथमे लगल बेड़ियो खुल गेलै । गोकुलके निवासी नन्दके पत्नी यशोदोके सन्तान प्राप्ति होवे वाला हलै । वासुदेव अपन पुत्रके सूपमे रखके कारागृहसे निकल पड़लन ।[42] [43][44][45]

ढेर भारतीय ग्रन्थमे कहल गेलै हे कि पौराणिक कुरुक्षेत्र युद्ध (महाभारतके युद्ध) मे गान्धारीके सब सौ पुत्र मु जा है । दुर्योधनके मृत्युसे पहिले रातके कृष्ण गान्धारीके उनकर संवेदना प्रेषित कैलन हल । गान्धारी कृष्ण पर आरोप लगावऽ हे कि कृष्ण जानबूझके युद्धके समाप्त न कैलन, क्रोध आउ दुःखमे उनका श्राप दे हथिन कि उनकर अपन "यदु राजवंश" मे हर व्यक्ति उनकर साथहीँ नष्ट हो जैतै । महाभारतके अनुसार यादवके बीच एक त्यौहारमे एक लड़ाईके शुरुवात हो जा है, जेकरामे सब एक-दोसराके हत्या कर दे हथिन । कुछ दिन बाद एक पेड़के नीचे नीन्दमे सुतैत कृष्णके हिरण समझके, जरा नामक शिकारी तीर मारऽ है जे उनका घातक रूपसे घायल करऽ है । कृष्ण जराके क्षमा करऽ हथिन आउ देह त्याग दे हथिन ।[46][47][48] गुजरातमे भालकाके तीर्थस्थल ऊ स्थानके दर्शावऽ है जने कृष्ण अपन अवतार समाप्त कैलन आउ वापिस वैकुण्ठ गेलन । ई देहोतसर्गके नामोसे जानल जा है । भागवत पुराण अध्याय ३१ मे कहल गेलै हे कि उनकर मृत्युके बाद कृष्ण अपन योगिक एकाग्रताके चलते सीधा वैकुण्ठमे लौटलन । ब्रह्मा आउ इन्द्र जैसन प्रतीक्षारत देवतोके कृष्णके अपन मानव अवतार छोड़े आउ वैकुण्ठ लौटेला मार्गके पता न लगलै ।[49]

बाल्यकाल आउ युवावस्था

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कृष्ण देवकी आउ उनकर पति वासुदेवके एहाँ जन्म लेलन । देवकीके भाई कंस दुष्ट राजा हलै । पौराणिक उल्लेखके अनुसार देवकीके विवाहमे कंसके भविष्यद्वक्ता बतौलन कि देवकीके अठमा पुत्र द्वारा ओकर वध निश्चित है । कंस देवकेके सब बच्चाके मारेके व्यवस्था करऽ है । जखनि कृष्ण जन्म ले हथिन, वासुदेव चुपकेसे शिशु कृष्णके यमुनाके पार ले जा हथिन आउ एक अन्य शिशु बालिकाके साथ उनका आदान-प्रदान करऽ हथिन । जखनि कंस ई नवजात शिशुके मारेके प्रयास करऽ है तखनि शिशु बालिका हिन्दु देवी दुर्गाके रूपमे प्रकट होवऽ है, आउ ओकरा चेतावनी देइत कि ओकर मृत्यु ओकर राज्यमे आ गेलै हे, लोप हो जा है । पुराणमे किंवदन्तीके अनुसार कृष्ण नन्द आउ उनकर पत्नी यशोदाके साथे आधुनिक कालके मथुराके पास पलऽ बढ़ऽ हथिन । ई सब पौराणिक कथाके अनुसार कृष्णके दु भाइयो-बहिन रहऽ हथिन, बलराम आउ सुभद्रा । कृष्णके जन्मके दिन जन्माष्टमीके रूपमे मनावल जा है ।

वयस्कता

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भागवत पुराण कृष्णके आठ पत्नीके वर्णन कर है, जे ई अनुक्रममे - रुक्मिणी, सत्यभामा, जामवन्ती, कालिन्दी, मित्रवृन्दा, नाग्नजिती (जिनका सत्यो कहल जा है), भद्रा आउ लक्ष्मणा (जिनका मद्रो कहल जा है) - प्रकट होवऽ हथिन । डेनिस हडसनके अनुसार ई एक रूपक है, आठ पत्नी उनकर अलग पहलूके दर्शाती है । जॉर्ज विलियम्सके अनुसार वैष्णव ग्रन्थमे कृष्णके पत्नीके रूपमे सब गोपीके उल्लेख है, किन्तु ई सब भक्ति एवं आध्यात्मिक सम्बन्धके प्रतीक है । आउ प्रत्येकला कृष्ण पूर्ण श्रद्धेय हथिन । उनकर पत्नीके कहियो-कहियो रोहिणी, राधा, रुक्मिणी, स्वामीनिजी या अन्य कहल जा है । कृष्ण-सम्बन्धी हिन्दु परम्परामे, ऊ राधाके साथे सबसे अधिक चित्रित होवऽ हथिन । उनकर सब पत्नीके आउ उनकर प्रेमिका राधाके हिन्दु परम्परामे विष्णुके पत्नी देवी लक्ष्मीके अवतारके रूपमे मानल जा है । गोपी सबके राधाके ढेर रूप आउ अभिव्यक्तिके रूपमे मानल जा है ।[50]

कुरुक्षेत्रके महाभारत युद्ध

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महाभारतके अनुसार कृष्ण कुरुक्षेत्र युद्धला अर्जुनके सारथी बनऽ हथिन, किन्तु ई शर्त पर कि ऊ कौनो हथियार न उठैथिन । दुनोके युद्धके मैदानमे पहुँचेके बाद आउ ई देखैत कि शत्रु उनकर अपने परिवारके सदस्य, उनकर दादा, आउ उनकर चचेरा भाई आउ प्रियजन हथिन, अर्जुन क्षोभमे डूब जा हथिन आउ कहऽ हथिन कि उनकर ह्रदय उनका अपन परिजनसे लड़े आउ मारेके अनुमति न देइ । आ राज्यके त्यागेला आउ अपन गाण्डीव (अर्जुनके धनुष) के छोड़ेला तत्पर हो जा हथिन । कृष्ण तखनि उनका जीवन, नैतिकता आउ नश्वरताके प्रकृतिके बारेमे ज्ञान दे हथिन । जखनि कौनोके बेस आउ बुराके बीच युद्धके सामना करे पड़ऽ है तखनि परिस्थितिके स्थिरता, आत्माके स्थायीता आउ बेस खराबके भेद ध्यानमे रखैत, कर्तव्य आउ जिम्मेदारीके निभावैत, वास्तविक शान्तिके प्रकृति आउ आनन्द आउ विभिन्न प्रकारके योगके आनन्द आउ भीतरेके मुक्तिला ऐसन योध अनिवार्य होवऽ है । कृष्ण आउ अर्जुनके बीच बातचीतके भगवद्गीता नामक एक ग्रन्थके रूपमे प्रस्तुत कैल गेलै हे ।[51][52][53]

श्रीमद्भगवद्गीता

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कुरु क्षेत्रके युद्धभूमिमे श्रीकृष्ण अर्जुनके जे उपदेश देलन हल ऊ श्रीमद्भगवदगीताके नामसे प्रसिद्ध है । सब हिन्दु ग्रन्थमे श्रीमद्भगवत गीताके सबसे महत्वपूर्ण मानल जा है । काहेकि एकरामे एक व्यक्तिके जीवनके सार है आउ एकरामे महाभारत कालसे द्वापर तक कृष्णके सब लीलाके वर्णन है । ऐसी मान्यता है कि ई महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित है हालाँकि एकरामे कौनो प्रमाण न है किन्तु भगवद गीता एक पुस्तक है जे अर्जुन आउ उनकर सारथी श्रीकृष्णके बीच वार्तालाप पर आधारित है । गीतामे साङ्ख्य योग, कर्म योग, भक्ति योग, राजयोग, एक ईश्वरावाद आदि पर बड़ी सुन्दर तरीकासे चर्चा कैल गेलै हे ।

संस्करण आउ व्याख्या

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कृष्णके जीवन कथाके ढेर संस्करण है, जेकरामे से तीनके सबसे अधिक अध्ययन कैल गेलै हे: हरिवंश, भागवत पुराण आउ विष्णु पुराण ।[54] ई सब मूले कहानीके दर्शावऽ है किन्तु उनकर विशेषता, विवरण आउ शैलीमे बड़ी भिन्नता है । सबसे मूल रचना, हरिवंशके एक यथार्थवादी शैलीमे बतावल गेलै हे जे कृष्णके जीवनके एक गरीब ग्वालाके रूपमे बतावऽ है, किन्तु काव्यात्मक आउ अलौकिक कल्पनासे ओतप्रोत है । ई कृष्णके अवतार समाप्तिके साथे समाप्त न होवै । कुछ विवरणके अनुसार विष्णु पुराणके पचमा पुस्तक हरिवंशके यथार्थवादसे दूर हो जा है आउ कृष्णके रहस्यमय शब्द आउ स्तम्भमे आवरण करऽ है । ढेर संस्करणमे विष्णु पुराणके पाण्डुलिपि सब मौजूद है ।

भागवत पुराणके दसमा आउ इगारहमा पुस्तकके व्यापक रूपसे एक कविष्ठ कृति मानल जा है, जे कि कल्पना आउ रूपकसे भरल है, हरिवंशमे पाएल जाएवाला जीवके यथार्थवादसे कौनो सम्बन्ध न है । कृष्णके जीवनके एक ब्रह्माण्डीय नाटक (लीला) के रूपमे प्रस्तुत कैल गेलै हे, जने उनकर पिता धर्मगुरू नन्दके एक राजाके रूपमे पेश कैल गेलै हल । कृष्णके जीवन हरिवंशमे एक इन्सानके करीब है, किन्तु भागवत पुराणमे एक प्रतीकात्मक ब्रह्माण्ड है, जने कृष्ण ब्रह्माण्डके भीतरे हथिन आउ एकर इलावा, साथे ब्रह्माण्डो हमेशेसे है आउ रहतै । ढेर भारतीय भाषामे भागवत पुराण पाण्डुलिपि ढेर संस्करणोमे मौजूद है ।

एकरो देखी

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टिप्पणी

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  1. The regional texts vary in the identity of Krishna's wife (consort), some presenting it as Rukmini, some as Radha, some as Svaminiji, some adding all gopis, and some identifying all to be different aspects or manifestation of one Devi Lakshmi.[4][5]

सन्दर्भ

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  1. Ben-Ami Scharfstein (1993). Ineffability: The Failure of Words in Philosophy and Religion. State University of New York Press. प॰ 166. आई॰ऍस॰बी॰एन॰ 978-0-7914-1347-0. मूलसे 7 अप्रैल 2017 के पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 अप्रैल 2018., Quote: "Krishna, god of love, (...)"
  2. Edwin Bryant & Maria Ekstrand 2004, पृ॰प॰ 20–25, Quote: "Three Dimensions of Krishna's Divinity (...) divine majesty and supremacy; (...) divine tenderness and intimacy; (...) compassion and protection.; (..., p.24) Krishna as the God of Love".
  3. Bryant 2007, पृ॰ 114.
  4. 1 2 John Stratton Hawley, Donna Marie Wulff (1982). The Divine Consort: Rādhā and the Goddesses of India. Motilal Banarsidass Publisher. प॰ 12. आई॰ऍस॰बी॰एन॰ 9780895811028.
  5. Bryant 2007, पृ॰ 443.
  6. 1 2 Archived 2019-10-18 at the वेबैक मशीन Archived 2018-09-16 at the वेबैक मशीन
  7. Bryant 2007, पन्ना 382
  8. "श्री कृष्ण का नामकरण संस्कार". वेबदुनिया. वेब दुनिया. मूल से 14 अप्रैल 2018 के पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 अप्रैल 2018.
  9. Monier Monier Williams, Go-vinda
    Archived 2004-09-13 at the वेबैक मशीन , Sanskrit English Dictionary and Ettymology, Oxford University Press, p. 336, 3rd column
  10. Bryant 2007, पन्ना 17
  11. Hiltebeitel, Alf (2001). Rethinking the Mahābhārata: a reader's guide to the education of the dharma king. Chicago: University of Chicago Press. पप॰ 251–53, 256, 259. आई॰ऍस॰बी॰एन॰ 0-226-34054-6.
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