Jump to content

Wp/mag/निर्वाण

From Wikimedia Incubator
< Wp | mag
Wp > mag > निर्वाण

निर्वाण के शाब्दिक अर्थ है - 'बुतल' (दीपक अग्नि, आदि) । किन्तु बौद्ध, जैनधर्म, श्रमण विचारधारामे (संस्कृत: निर्वाण ;पालि: निब्बान ;) पीड़ा या दुःखसे मुक्ति पावेके स्थिति है । पालिमे "निब्बाण" के अर्थ है "मुक्ति पाना"- यानी, लालच, घृणा आउ भ्रमके अग्निसे मुक्ति ।[1]बौद्धधर्मके परम सत्य है आउ जैनधर्मके मुख्य सिद्धान्त ।

यद्यपि 'मुक्ति' के अर्थमे निर्वाण शब्दके प्रयोग गीता, भागवत, रघुवंश, शारीरक भाष्य इत्यादि नया-पुराना ग्रन्थमे मिलऽहै, तथापि ई शब्द बौद्धके पारिभाषिक है । साङ्ख्य, न्याय, वैशेषिक, योग, मीमांसा (पूर्व) आउ वेदान्तमे क्रमशः मोक्ष, अपवर्ग, निःश्रेयस, मुक्ति या स्वर्गप्राप्ति तथा कैवल्य शब्दके व्यवहार होलै हे पर बौद्ध दर्शन आउ जैन दर्शनमे बराबर निर्वाण शब्दे आएल है आउ ओकर विशेष रूपसे व्याख्या कैल गेलै हे ।

बौद्धधर्ममे निर्वाण

[edit | edit source]
बौद्धधम्म

श्रेणीके भाग

बौद्धधर्मके इतिहास
· बौद्धधर्मके कालक्रम
· बौद्धसंस्कृति
बुनियादी मनोभाव
चार आर्यसत्य ·
आर्य अष्टाङ्गमार्ग ·
निर्वाण · त्रिरत्न · पञ्चशील
मुख्य व्यक्ति
गौतमबुद्ध · बोधिसत्व
क्षेत्रानुसार बौद्धधर्म
दक्खिनपूरुबी बौद्धधर्म
· चीनी बौद्धधर्म
· तिब्बती बौद्धधर्म ·
पच्छिमी बौद्धधर्म
बौद्ध सम्प्रदाय
थेरवाद · महायान
· वज्रयान
बौद्ध साहित्य
त्रिपतक · पालि ग्रन्थसङ्ग्रह
· बिनय
· पालिसूत्र · महायानसूत्र
· अभिधर्म · बौद्धतन्त्र

बौद्धधर्मके दु प्रधान शाखा है — हीनयान (या उत्तरीय) आउ महायान (या दक्षिणी) । एकरा सबमे से हीनयान शाखाके सब ग्रन्थ पालीभाषामे है आउ बौद्धधर्मके मूलरूपके प्रतिपादन करऽहै । महायान शाखा कुछ पीछेके है आउ ओकर सब ग्रन्थ संस्कृतमे लिखल गेलै हे । महायाने शाखामे अनेक आचार्य द्वारा बौद्ध सिद्धान्तके निरूपण गूढ़ तर्कप्रणाली द्वारा दार्शनिक दृष्टि से होलै हे । प्राचीन कालमे वैदिक आचार्यके जौन बौद्ध आचार्यसे शास्त्रार्थ होलै हल ऊ प्रायः महायान शाखाके हलै । अतः निर्वाण शब्द से की अभिप्राय है एकर निर्णय उनके वचन द्वारा हो सकऽहै । बोधिसत्व नागार्जुन माध्यमिक सूत्रमे लिखकै हे कि 'भवसन्तति के उच्छेदे निर्वाण है', अर्थात् अपन संस्कार द्वारा हमनी बेर बेर जन्मके बन्धनमे पड़ऽ हिऐ एकरा से उनकर उच्छेद द्वारा भवबन्धन के नाश हो सकऽ है । रत्नकूटसूत्रमे बुद्धके वचन हैः राग, द्वेष आउ मोहके क्षयसे निर्वाण होवऽहै । बज्रच्छेदिकामे बुद्ध कहलथिन हे कि निर्वाण अनुपधि है, ओकरामे कोई संस्कार न रह जा है । माध्यमिक सूत्रकार चन्द्रकीर्ति निर्वाणके सम्बन्धमे कहकै है कि सर्वप्रपञ्चनिवर्तक शून्यते के निर्वाण कहल जा है । ई शून्यता या निर्वाणके है ! न एकरा भाव कह सकऽ हिऐ, न अभाव । काहेकि भाव आउ अभाव दुनोके ज्ञानके क्षपेके नाम त निर्वाण है, जे अस्ति आउ नास्ति दुनो भावके परे आउ अनिर्वचनीय है ।

इहो देखी

[edit | edit source]

सन्दर्भ

[edit | edit source]
  1. रिचर्ड गोमब्रिच, थेरवाद बुद्धिज्म: अ सोशल हिस्ट्री फ्रॉम एनशिएण्ट बनारस टू मॉडर्न कोलम्बो (Theravada Buddhism: A Social History from Ancient Benares to Modern Colombo). राउटलेज आउ कीगन पॉल, 1988, पृष्ठ 63: "निब्बाणके अर्थ है 'उड़ा देना.' जेकरा उड़ा देल जाएल चाही ऊ है लालच, घृणा आउ भ्रम के तीन गुनी अग्नि. "