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Wp/mag/उपनिषद्

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Wp/mag/उपनिषद्
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हिन्दु मापनप्रणाली

उपनिषद् हिन्दुधर्मके महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ है । ई वैदिक वाङ्मयके अभिन्न भाग है । ई संस्कृतमे लिखल गेल है । एकर सङ्ख्या लगभग १०८ है, किन्तु मुख्य उपनिषद् १३ है । हर एक उपनिषद् कौनो न कौनो वेदसे जुड़ल है । एकरामे परमेश्वर, परमात्मा-ब्रह्म आउ आत्माके स्वभाव आउ सम्बन्धके बड्डी दार्शनिक आउ ज्ञानपूर्वक वर्णन देल गेल है ।

उपनिषदमे कर्मकाण्डके 'अवर' कहके ज्ञानके एहीसे महत्त्व देल गेलै कि ज्ञान स्थूल (जगत आउ पदार्थ) से सूक्ष्म (मन आउ आत्मा) करे ले जाहै । ब्रह्म, जीव आउ जगत्‌के ज्ञान पाएल उपनिषद् के मूल शिक्षा है । भगवद्गीता एवं ब्रह्मसूत्र, उपनिषद् के साथे मिलके वेदान्तके 'प्रस्थानत्रयी' कहला है । ब्रह्मसूत्र आउ गीता कुछ सीमा तक उपनिषद पर आधारित है । भारतके समग्र दार्शनिक चिन्तनधाराके मूल स्रोत उपनिषद-साहित्ये है । एकरासे दर्शनके जे विभिन्न धारा निकललै हे, ओकरामे 'वेदान्त दर्शन' के अद्वैत सम्प्रदाय प्रमुख है । उपनिषदके तत्त्वज्ञान आउ कर्तव्यशास्त्रके प्रभाव भारतीय दर्शनके अतिरिक्त धर्म आउ संस्कृतियो पर परिलक्षित होवऽहै । उपनिषदके महत्त्व ओकर रोचक प्रतिपादन शैलीके चलतहुँ है । ढेर सुनर आख्यान आउ रूपक, उपनिषदमे भेँटऽहै ।

उपनिषद् भारतीय सभ्यताके अमूल्य धरोहर है । उपनिषदे समस्त भारतीय दर्शनके मूल स्रोत है, चाहे ऊ वेदान्त होबे चाहे साङ्ख्य । उपनिषदके स्वयमो 'वेदान्त' कहल गेलै हे । १७मा शताब्दीमे दारा शिकोह अनेक उपनिषद के फारसीमे अनुवाद करौलक । १९मा शताब्दी मे जर्मन तत्त्ववेता शोपेनहावर ई सब ग्रन्थमे जे रुचि देखाके एकर अनुवाद कैलक ऊ सर्वविदित है आउ माननीय है । विश्व के ढेर दार्शनिक उपनिषद के सबसे निम्मन ज्ञानकोश मानल जाहै ।

उपनिषद भारतीय आध्यात्मिक चिन्तनके मूल आधार है, भारतीय आध्यात्मिक दर्शनके स्रोत है । ऊ ब्रह्मविद्या है । जिज्ञासा सबके ऋषि द्वारा खोजल उत्तर है । ऊ चिन्तनशील ऋषिके ज्ञानचर्चाके सार है । ओह कवि-हृदय ऋषिके काव्यमय आध्यात्मिक रचना है, अज्ञातके खोजके प्रयास है, वर्णनातीत परमशक्तिके शब्दमे प्रस्तुत कराबेके प्रयास है आउ ऊ निराकार, निर्विकार, असीम, अपारके अन्तरदृष्टिसे बुझे आउ परिभाषित करेके अदम्य आकांक्षाके लेखबद्ध विवरण है ।[1]

ईशोपनिषद्के पाण्डुलिपिके एक पन्ना

उपनिषदके वर्गीकरण

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वर्तमान समयमे २०० से अधिक ग्रन्थ है जेकरा 'उपनिषद' नाम से अभिहित कैल जाहै । मुक्तिका उपनिषद् मे १०८ उपनिषदके सूची देल गेलै हे जेकरामे मुक्तिका उपनिषद स्वयं १०८मा स्थान पर है । उपनिषदके अनेक प्रकारसे वर्गीकृत कैल जाहै ।

वेदसे सम्बन्धके आधार पर

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वैदिक संहिताके अनन्तर वेदके तीन प्रकारके ग्रन्थ है- ब्राह्मण, आरण्यक आउ उपनिषद् । ई सब ग्रन्थके सीधा सम्बन्ध अपन वेदसे होवऽहै, जैसे ऋग्वेदके ब्राह्मणण, ऋग्वेदके आरण्यक आउ ऋग्वेदके उपनिषदके साथे ऋग्वेदके संहिता ग्रन्थ मिलके भारतीय परम्पराके अनुसार 'ऋग्वेद' कहला है ।

कौनो उपनिषदके सम्बन्ध कौन वेदसे है, ई आधार पर उपनिषदके निम्नलिखित श्रेणीमे विभाजित कैल जाहै-

(१) ऋग्वेदीय -- १० उपनिषद्

(२) शुक्ल यजुर्वेदीय -- १९ उपनिषद्

(३) कृष्ण यजुर्वेदीय -- ३२ उपनिषद्

(४) सामवेदीय -- १६ उपनिषद्

(५) अथर्ववेदीय -- ३१ उपनिषद्

कुल -- १०८ उपनिषद्

ई सबके अतिरिक्त नारायण, नृसिंह, रामतापनी एवं गोपाल चार उपनिषद् आउ है ।

वेद-उपनिषद सम्बन्ध
वेदसङ्ख्या[2]मुख्य[3]सामान्यसंन्यास[4]शाक्त[5]वैष्णव[6]शैव[7]योग[8]
ऋग्वेद १०ऐतरेय, कौषीतकिआत्मबोध, मुद्गलनिर्वाण त्रिपूरा, सौभाग्य लक्ष्मी, बहवृच-अक्षमालिका नादबिन्दु
सामवेद १६छान्दोग्य, केनवज्रसुचिक, महा, सावित्रीआरूणीक, मैत्रेय, बृहत-संन्यास, कुण्डिक (लघु-संन्यास)-वासुदेव, अव्यक्तरुद्राक्षजबाल, जाबालीयोग चुडामणी, दर्शन
कृष्ण यजुर्वेद ३२तैत्तिरीय, कठ, श्वेताश्वर, मैत्रायणी[note 1]सर्वसार, सुखरहस्य, स्कन्ध, गर्भ, शारीरक, एकाक्षर, अक्षिब्रह्म, (लधु, बृहद) अवधूत, कठश्रुतिसरस्वतीरहस्य नारायण, कलि-सन्तरणकैवल्य, कालाग्नि रुद्र, दक्षिणामूर्ति, रुद्रहृदय, पंचब्रह्मअमृतबिन्दु, तेजोबिन्दु, अमृतनाद, क्षुरीक, ध्यानबिन्दु, ब्रह्मविद्या, योगतत्व, योगशिखा, योगकुंडलिनी, वराह
शुकल यजुर्वेद १९बृहदारण्यक, इशावास्यसुबल, मान्त्रिक, नीरालम्ब, पिंगळ, अध्यात्म, मुक्तिकाजाबला, परमहंस, भिक्षुक, तुरियातीता-अवधुत, याज्ञवल्क्य, सत्य्यानिया-तार-सार -अद्वयतारक, हंस, त्रिशिखी, मण्डल
अथर्ववेद ३१मुण्डक, माण्डुक्य, प्रश्नआत्मा, सूर्य, प्रांगनिहोत्रा[10]अशर्म, नारद-परिव्राजक, परमहंस परिव्राजक, परब्रह्मसीता, देवी, त्रिपुरातापनि, भावनानृसिंहतापनी, महानारायण (त्रिपद्विभूति), रामरहस्य, रामतापणी, गोपालतपणि, कृष्ण, हयग्रीव, दत्तात्रेय, गरुडअथर्वशिर,[11] अथर्वशिख, बृहज्जबाल, शरभ, भस्मजाबाल, गणपतिशाण्डिल्य, पाशुपत, महावाक्य
कुल उपनिषद१०८१३२११९१४१३२०

मुख्य उपनिषद एवं गौण उपनिषद

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विषयके गम्भीरता एवं विवेचनके विशदताके चलते १३ उपनिषद् विशेष मान्य एवं प्राचीन मानल जा है ।

जगद्गुरु आदि शङ्कराचार्य १० पर अपन भाष्य देलन हे-
(१) ईश, (२) ऐतरेय (३) कठ (४) केन (५) छान्दोग्य (६) प्रश्न (७) तैत्तिरीय (८) बृहदारण्यक (९) माण्डूक्य आउ (१०) मुण्डक ।

ऊ निम्न तीनके प्रमाण कोटिमे रखलन हे-
(१) श्वेताश्वतर (२) कौषीतकि एवं (३) मैत्रायणी ।

अन्य उपनिषद् भिन्न-भिन्न देवता विषयक होवेके चलते 'तान्त्रिक' मानल जा है । ऐसन उपनिषदमे शैव, शाक्त, वैष्णव एवं योग विषयक उपनिषदके प्रधान गणना है ।

प्रतिपाद्य विषयके आधार पर

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डॉ॰ ड्यूसेन, डॉ॰ बेल्वेकर एवं रानडे उपनिषदके विभाजन प्रतिपाद्य विषयके दृष्टिसे ई प्रकार कैलन हे:

१. गद्यात्मक उपनिषद्

१. ऐतरेय, २. केन, ३. छान्दोग्य, ४. तैत्तिरीय, ५. बृहदारण्यक तथा ६. कौषीतकि;
इनकर गद्य ब्राह्मणके गद्यके समान सरल, लघुकाय एवं प्राचीन है ।

२.पद्यात्मक उपनिषद्

१.ईश, २.कठ, ३. श्वेताश्वतर एवं नारायण
इनका पद्य वैदिक मन्त्रके अनुरूप सरल, प्राचीन एवं सुबोध है ।

३.अवान्तर गद्योपनिषद्

१.प्रश्न, २.मैत्री (मैत्रायणी) एवं ३.माण्डूक्य

४.आथर्वण (अर्थात् कर्मकाण्डी) उपनिषद्

अन्य अवान्तरकालीन उपनिषदके गणना ई श्रेणीमे कैल जा है ।

भाषा एवं उपनिषद के विकासक्रम के आधार पर

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भाषा एवं उपनिषदके विकास क्रमके दृष्टिसे डॉ॰ डासन उनकर विभाजन चार स्तरमे कैलन हे:

प्राचीनतम

१. ईश, २. ऐतरेय, ३. छान्दोग्य, ४. प्रश्न, ५. तैत्तिरीय, ६. बृहदारण्यक, ७. माण्डूक्य और ८. मुण्डक

प्राचीन

१. कठ, २. केन

अवान्तरकालीन

१. कौषीतकि, २. मैत्री (मैत्राणयी) एवं ३. श्वेताश्वतर

सन्दर्भ

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  1. "उपनिषद क्या हैं, आइए समझें". मूल से 2 अप्रैल 2019 के पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 सितम्बर 2019.
  2. 1 2 Parmeshwaranand 2000, पृ॰प॰ 404–406.
  3. Peter Heehs (2002), Indian Religions, New York University Press, ISBN 978-0814736500 , pages 60-88
  4. Patrick Olivelle (1992), The Samnyasa Upanisads, Oxford University Press, ISBN 978-0195070453 , pages x-xi, 5
  5. AM Sastri, The Śākta Upaniṣads, with the commentary of Śrī Upaniṣad-Brahma-Yogin, Adyar Library, Template:Wp/mag/Oclc
  6. AM Sastri, The Vaishnava-upanishads: with the commentary of Sri Upanishad-brahma-yogin, Adyar Library, Template:Wp/mag/Oclc
  7. AM Sastri, The Śaiva-Upanishads with the commentary of Sri Upanishad-Brahma-Yogin, Adyar Library, Template:Wp/mag/Oclc
  8. The Yoga Upanishads TR Srinivasa Ayyangar (Translator), SS Sastri (Editor), Adyar Library
  9. Paul Deussen, Sixty Upanishads of the Veda, Volume 1, Motilal Banarsidass, ISBN 978-8120814684 , pages 217-219
  10. Prāṇāgnihotra is missing in some anthologies, included by Paul Deussen (2010 Reprint), Sixty Upanishads of the Veda, Volume 2, Motilal Banarsidass, ISBN 978-8120814691 , page 567
  11. Atharvasiras is missing in some anthologies, included by Paul Deussen (2010 Reprint), Sixty Upanishads of the Veda, Volume 2, Motilal Banarsidass, ISBN 978-8120814691 , page 568

टिप्पणी

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  1. Parmeshwaranand classifies Maitrayani with Samaveda, most scholars with Krishna Yajurveda[2][9]